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बुद्धि में वृत्ति का उठना ही अज्ञान है और वृत्ति का शान्त होना ही परम गति है। हम तो इस ज्ञान और अज्ञान के भी द्रष्टा हैं। हम तो ज्ञान-अज्ञान, भाव-अभाव सबके प्रकाशक हैं।
हरि ॐ !

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