आत्मा और अनात्मा का विवेक, स्वानुभव, ब्रह्म भाव में स्थिति और मुक्ति ये तो करोड़ों जन्मों में किये हुए पुण्य कर्मों के फल के बिना प्राप्त नहीं हो सकते।
हरि ॐ !
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