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नास्तिकों को भी भीतर से परमात्मा की इच्छा नहीं मिट सकती क्योंकि परमात्मा को नहीं मानने वालों को भी सदा जीने की इच्छा रहती है, जानकारी की इच्छा रहती है और सुख-शान्ति की इच्छा रहती है। उनकी ये इच्छाएं सच्चिदानन्दघन परमात्मा की ही हैं, क्योंकि उनके जीवित रहने की इच्छा ‘सत्‌’ की इच्छा है, जानकारी की इच्छा ‘चित्’ की इच्छा है और सुख की चाहत ‘आनन्द’ की इच्छा है।
हरि ऊँ !

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