धन भी, पद भी, प्रतिष्ठा भी, बच्चे भी, परिवार भी, समाज भी, सम्मान भी, स्वस्थता भी नहीं एक ऐसी चीज की कल्पना करके बताओ कि ये मिल जाय तो मैं अपने जीवन की इति मान लूँगा, सफल मान लूँगा; वह ‘साध्य’ होगा। जिसे अपनी स्थिति का बोध हो तो वह ‘साधक’ और तब जो करेंगे उसका नाम होगा ‘साधना’ । ‘साधना’ में तीन चीजें शरीर पर संयम हो, वाणी पर संयम हो और साथ ही साथ मन पर संयम हो। ऐसी स्थिति हो।
हरि ऊँ !
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