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जिस प्रकार ऊँची कूद के लिए लाठी की आवश्‍यकता पड़ती है, पर उसे भी छोड़ना पड़ता है। ठीक ऐसे ही साक्षी भाव, स्वरूप में स्थित होने के लिए आवश्यक है। इसको भी छोड़ना पड़ता है।

हरि ऊँ!

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