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शरीर भी एक संघात है। पाँच महाभूतों से पाँच ग्यानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच प्राण, चतुष्टय अंतःकरण मिलकर यह शरीर रूपी महल बना है। यह शरीर स्वयं अपना सुख अपने आप नहीं उठाता बल्कि इसका सुख इससे पृथक रहने वाला आत्मा उठाता है।