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कर्म अहं का सानिध्य चाहता है और भाग्य अहं से दूरी । अहं युक्त कर्म करने से भाग्य दूर जाती है और अहं रहित भाग्यानुसरण से कर्म दूर हो जाता है। निष्काम कर्म से ही जीवन में सदैव संतुलन सम्भव है । हरि ॐ!