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इस जड़ जगत में केवल पुरुष ही चैतन्य है, सर्वव्यापी है। जो सर्वव्यापी नहीं है, वह निश्चित रूप से ससीम होगा। सभी सीमायें कारणोत्पन्न हैं; जो कार्यस्वरूप हैं, उनका आदि और अन्त है। यदि पुरुष ससीम है, तो वह चरम तत्व नहीं हो पायेगा बल्कि यह भी कारणोत्पन्न होगा।
हरि ॐ!

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