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सत्ता वस्तु के ज्ञान में होती है। पहले ज्ञान होता है तो उसकी सत्ता है। ‘अस्ति’ है सत्ता। उपनिषद कहता है – ‘यस्य ज्ञान मयं तपः’ भीतर का ज्ञान ही जगत को सत्ता दे रहा है।
हरि ऊँ !