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मन अपने चेतन स्वरुप से अलग नहीं है जैसे जल और बर्फ दो नहीं हैं। जल का स्थूल भाव ही बर्फ है और बर्फ का तरल भाव ही जल है। वैसे ही वृत्तियों का उठना संकल्प, विकल्प करना हो गया मन और जहां ये सब शान्त हैं तो हो गया स्वरूप (शुद्ध ब्रह्म)।
हरि ॐ!

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