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जब मन दूर अवस्थित ब्रह्मलोक जैसे लोकों की ओर तेजी से चलता है तो वह शुद्ध चैतन्य स्वरूप आत्मा को वहाँ पहले से ही उपस्थित पाता है, अतः कहा गया है कि यह सूक्ष्म आत्मा, मन से भी अधिक वेगवान है।

हरि ऊँ !

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