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सोपाधिक ब्रह्म कर्त्ता – भोक्ता है और उपाधि रहित ब्रह्म निष्क्रिय है, तटस्थ है, कूटस्थ है, निर्विकार है, स्वयं प्रकाश है, कर्त्ता – भोक्ता से रहित है । वह न किसी का कारण है और न ही कार्य । दोनों से परे है । हरि ऊँ !