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अज्ञान मात्र की निवृत्ति और स्वरुप का ज्ञान होते ही दृष्टि का आवरण भंग हो जाता है और तत्व ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है परिणाम स्वरूप व्यक्ति शोक रहित हो जाता है।

हरि ऊँ !

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