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जो तत्व इस देहेन्द्रिय संघात में भासता है, वही अन्यत्र (देहादि से परे) भी है और जो अन्यत्र है, वही इसमें है। जो मनुष्य इस तत्व में नानात्व देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु (अर्थात जन्म-मरण) को प्राप्त होता है।
हरि ऊँ!

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