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दृश्यवारितं चित्तमात्मनः ।
चित्वदर्शनं तत्त्वदर्शनं ॥
(साधक द्वारा जब मन को विषयों से हटाकर अन्तर्मुख कर लिया जाता है, तो यह (मन) अपने मूल स्रोत ‘चैतन्य-तत्त्व’ का दर्शन करने लगता है। ऐसा दर्शन ही तत्व दर्शन है।)