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आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तापों से मेरा अहंकार पीड़ित होता है। यह त्रिताप ही अहंकार को दुख देते हैं। मैं अहंकार नहीं हूँ, मैं तो साक्षी हूँ, सवव्यापी हूँ, प्रिय हूँ।
हरि ऊँ !

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