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जिसने जीवन में कभी त्याग नहीं किया उसे कभी सुख नहीं मिलता, सपने में भी नहीं। उसको उस परम तत्व का बोध कभी नहीं हो सकता। त्याग बाहर अथवा भीतर से हो सकता है, यहाँ गृहस्थ और सन्यासी की बात नहीं है। जो मानसिक राग बना हुआ है उसका त्याग हो।
हरि ॐ !

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