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श्रुति प्रतिपादित अग्निहोत्रादि कर्म करने से जिनका चित्त शुद्ध हो गया है, जो निष्काम भाव से अनासक्त होकर वर्णाश्रमोचित आवश्यक कर्तव्य कर्म का अनुष्ठान करते हैं, उनमें ही उपनिषद का ज्ञान उत्पन्न होता है!                                                                                       हरि ॐ!

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