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नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्ये न चक्षुषा।
अस्तीति ब्रुवतोऽन्यत्र कथं तदुपलभ्यते ॥
(वह न वाणी से, न मन से, न चक्षु से ही प्राप्त किया जा सकता है, ‘वह है’ इस कथन के अतिरिक्त उसे अन्य किसी भी प्रकार से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।)
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