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जीवन में राग द्वेष का न होना, आत्म शक्ति की प्रबलता का होना, इन्द्रियों के बिषयों में अनासक्त होना, जीवन में सहनशीलता का बढना, गुरु, शास्त्र और ईश्वर में श्रद्धा का बढ जाना ये सब वैराग्य की पह्चान है। आत्म बोध वैराग्यवान में ही ठहरेगा । जिस प्रकार शेरनी का दूध सोने के पात्र में ही ठहरता है। 

हरि ॐ !

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