पंचदशी ब्रह्मानंदान्तर्गत (अद्वैतानन्द) में
श्लोक संख्या 49, 50, 51 में सृष्टि निर्माण की तीसरा सिद्धान्त
विवर्तवाद--के अनुसार *कारण* तीनों काल में विद्यमान रहता है।
कार्य पैदा होता है कुछ समय तक रहता है और फिर लुप्त हो जाता है।
जैसे- स्वर्ण (कारण) में आभूषण (कार्य) बना, कुछ दिन रहा,फिर लुप्त हो गया परन्तु स्वर्ण बना रहता है। इसी तरह मिट्टी और घड़े को समझ लें।
मिट्टी में घड़ा,विवर्त है।
स्वर्ण में आभूषण,विवर्त है।
लोहे से बनी निहाई,विवर्त है।
उपनिषद आदि वेदान्त शास्त्र विवर्तवाद को स्वीकार करता है। छान्दोग्य उपनिषद में आरुणि मृतिका,स्वर्ण,लोहे के कारण रूप को ही सत्य मानते हैं ।।
घड़ा, आभूषण, निहाई आदि का कार्य मिथ्या है।
इसी तरह ब्रह्म ही सत्य है बाकी उसके माया शक्ति के कार्य-नाम,रूपात्मक जगत मिथ्या भासित होता रहेगा।
ऐसा निश्चय कर लेना है।
यही वेदान्त का अभ्यास है।
——-अनंतश्री विभूषित महामंडलेश्वर सद्गुरुदेव स्वामी अभयानन्द सरस्वती जी के स्वाध्याय से।
प्रयास – श्री बृजेश कुमार सिंह
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