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वृत्त्यात्मक अहं ही परिवर्तनशील है। सुख दुख़ आदि भी इसी अशुद्ध अहं के होते हैं। इस जगत का सम्बंध इस अहंकार से है न कि मुझ शुद्ध अहं से। मैं तो शुद्ध अहं चेतन आत्मा हूँ।
हरि ॐ !