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जगत व्यावहारिक सत्ता है। अज्ञान भेद दृष्टि है और ज्ञान अभेद अथवा एकत्व दृष्टि है। ब्रह्मज्ञान हो जाने पर संसार के विषय विलुप्त नहीं हो जाते जीवन्मुक्त के सामने भी यह जगत बना रहता है, परंतु उसके लिए नामरूपात्मक नानात्व निरर्थक और उसके मूल में विद्यमान शुद्ध सत् का एकत्व सार्थक होता है।

हरि ऊँ !

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